72825 शिक्षक भर्ती के नए विज्ञापन मामले की सुनवाई आज, पढें विस्तृत

परिषदीय विद्यालयों में 25 जुलाई 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में हुई 72825 टीईटी शिक्षकों के मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था जिसमें कोर्ट ने कहा जो लोग नियुक्ति लेकर काम कर रहे हैं वे काम करते रहेंगे लेकिन जो नई भर्ती होगी उसके लिए कोर्ट दिशानिर्देश जारी करेगा।


आपको बता दें कि कोर्ट के इसी कथन से 2012 के न्यू एड को उसी वक़्त संजीवनी मिल गई मगर प्रदेश सरकार ने राज्य कोष में अतिरिक्त बजट पर बोझ पड़ जाने के चलते आज तक 290 करोड़ रुपये जमा होने के साथ लिबर्टी प्राप्त इस भर्ती पर विचार नहीं किया जब कि अभ्यर्थियों ने हज़ारों की संख्या में लखनऊ के ईको गार्डन में सरकार के खिलाफ प्रदर्शन भी किया जिसको पुलिस द्वारा लाठीचार्ज करके खत्म करवा दिया और अभ्यर्थियों की बात रखने के लिए सी एम योगी आदित्यनाथ ने डिप्टी सी एम दिनेश शर्मा की अध्यक्षता में एक कमेटी इस उद्देश्य से बना दी कि कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर हम इस भर्ती के लिए ही कोई निर्णय ले पाएंगे। दो साल बाद जब अभ्यर्थियों ने डिप्टी सीएम से मुलाकात कर कमेटी रिपोर्ट को सार्वजनिक करने का दबाव बनाया तो डिप्टी सीएम ने किसी भी कमेटी के गठित होने की बात को सिरे से नकार दिया

सोशल मीडिया के ज़रिए सरकार पर लगातार भर्ती करने का दबाव बना रहे अचयनितों को तब जाकर खुशी मिली जब दो साल बाद कोरोना के चलते फिजिकल सुनवाई के साथ कोर्ट ने इस विज्ञापन को 26 जुलाई की तारीख मुकर्रर कर दी।

2011 से कोर्ट की लड़ाई लड़ रहे इस पूरे प्रकरण के जानकार वेद प्रकाश निमेष ने फोन वार्ता कर न्यूज़ पी. आर. को बताया कि टेट 2011 सुप्रीम कोर्ट का अंतिम आदेश माननीय जस्टिस यू. यू. ललित और आदर्श कुमार गोयल की कोर्ट में आया था जिसमें अधिवक्ता अजीत सिन्हा ने कोर्ट में बताया कि कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेशो में जिस 72825 भर्ती को हरी झंडी दी थी जो तकरीबन 90 % भर चुकी थी, पूरी तरह नियमविरुद्ध थी क्योंकि सरकार का कहना था कि इस भर्ती में शिक्षक सीधे सहायक अध्यापक न बनकर पहले 6 माह तक शिक्षक प्रशिक्षुक बनेंगे जब कि अधिवक्ता सिन्हा ने कोर्ट को बताया था कि यह भर्ती सहायक अध्यापकों की है प्रशिक्षु शिक्षकों की नहीं अर्थात सरकार सहायक अध्यापक नहीं बना रही बल्कि ट्रेनी टीचर की वेकेंसी निकाल रही है । मसलन सरकार को फ्रेश बीएड को भी शामिल करना चाहिए क्योंकि टेट की अनिवार्यता तो सहायक अध्यापकों के लिए है प्रशिक्षुकों के लिए नहीं।

वेद निमेष का कहना है कि अधिवक्ता सिन्हा ने कोर्ट को कहा कि यदि आप इसको सहायक अध्यापक का मानते तो नियमावली पर भर्ती का विज्ञापन नही है क्योंकि उसमें वर्गीकरण नही होता यानी आर्ट/विज्ञान/महिला/पुरूष , अब आप बताये ये कौन सा विज्ञापन है ट्रेनी टीचर या सहायक अध्यापक। अधिवक्ता सिन्हा द्वारा दी गयी दलील को सुनकर जस्टिस ललित बोले its dangerous matter. और उस दिन की सुनवाई खत्म हो गयी ।

अगले दिन 25 जुलाई को सुनवाई के अंतिम दिन जस्टिस ललित की पीठ ने सिन्हा द्वारा एक दिन पूर्व के उठाये गए उस मामले को सिरे से नकार दिया जिसमें जज द्वारा अधिवक्ता सिन्हा की दलील पर its
dangerous matter जैसी कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। कोर्ट के अंतरिम आदेशों के तहत पूरी हो चुकी भर्ती में नियुक्त लोग चूँकि वेतन तक ले रहे थे इसलिए पीठ ने इस मामले पर पर्दा डाला और कहा कि हमने सबको सुन लिया है अतः आदेश रिजर्व किया जाता है।

गौरतलब है कि यह मैटर वो था जिससे पुराना विज्ञापन गलत साबित हो गया था और न्यू विज्ञापन जो कि सहायक अध्यापकों का था जो सही था। परंतु भर्ती तो कोर्ट की पेंचीदा सुनवाई के आदेश के चलते तुगलकी फ़रमानो से 90% पूरी हो चुकी थी और अब नियुक्ति पाए लोगों को नॉकरी से निकलना संभव नहीं था तो पीठ को फाइनल आदेश में लिखना पड़ा कि 72825 में से 66655 नवनियुक्त शिक्षकों को बिना डिस्टर्ब किये जो कि नियम विरुद्ध भर्ती हो गए थे ,न्यू एड को सही माना और रिक्त 6170 पदों पर आदेश दिया कि सरकार इन पदों पर नियमानुसार पॉलिसी अपनाकर भर्ती पूरी करे ।

जानकारों की माने तो यदि कोर्ट के अंतिम आदेश में ऐसा न लिखा जाता तो कोई भी हाइकोर्ट जाकर 72825 में नियुक्ति पाए लोगों को बाहर करवा देता और दूसरे विज्ञापन को गलत नहीं बताया क्योंकि वो नियमावली पर था इसलिए प्रदेश सरकार को कोर्ट ने कहा कि आप इस विज्ञापन पर भर्ती करके योग्य आवेदकों को मौका दे सकते हैं,

आज समय ने एक बार फिर करवट ली और 26 जुलाई को होने वाली सुनवाई में वही जस्टिस हैं । अभ्यर्थियों का मानना है कि जस्टिस महोदय के पास 25 जुलाई 2017 को दिए गए आदेश को ध्यान में रखते हुए अचयनितों को न्याय देने का मौका मिला है।

ये है पूरा मामला

दरअसल, 30 नवंबर 2011 में 72,825 पदों पर भर्ती निकाली गई थी। इन पदों पर टीईटी के अंकों पर भर्ती होनी थी, जिसे अभ्यर्थियों ने हाईकोर्ट इलाहबाद में चैलेंज किया था। अभ्यर्थियों ने अकादमिक मेरिट पर भर्ती की माग रखी थी। इसी बीच 2012 में सपा सरकार आ गई और सरकार ने टीईटी मेरिट पर आधारित विज्ञापन को रद्द करके, 7 दिसंबर 2012 को 72825 पदों के लिए अकादमिक मेरिट के आधार पर नया विज्ञापन जारी किया गया।

कोर्ट में चलता रहा पुराना मामला

मुकदमे के दौरान इलाहबाद कोर्ट ने पुराने विज्ञापन को भी सही मानते हुए, उस पर ही भर्ती का आदेश दिया। यह आदेश नवंबर 2014 में आया। सपा सरकार ने विज्ञापन बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। अभ्यर्थियों के अनुसार 25 जुलाई 2017 को स्पष्ट अपने आदेश में नए विज्ञापन को सही मानते हुए अब तक हुए अंतरिम आदेशों पर हुई भर्तियों को सुरक्षित करते हुए, नए विज्ञापन पर भी भर्ती की सरकार को छूट दी लेकिन अभी तक मुख्यमंत्री के आश्वासन के बाद भी भर्ती नहीं हो सकी है।

ये हैं अभ्यर्थियों की मांगे

●सुप्रीम कोर्ट से बहाल 15वें संशोधन पर आधारित 7 दिसंबर 12 के विज्ञापन पर रुकी भर्ती प्रक्रिया तत्काल शुरू की जाए।

●सुप्रीम कोर्ट के अंतिम लिबर्टी देने जैसे आदेश 25 जुलाई 2017 का पूर्णत: पालन हो।

● ओवर एज हो चुके अभ्यर्थियों को अब किसी भी भर्ती में नहीं मिल सकेगा मौका इसलिए नियुक्ति देकर न्याय दें।

●10 वर्षों से पीड़ित बीएड टेट 2011 अध्यापक पात्रता (टीईटी) पास अभ्यर्थियों के साथ न्याय हो।