कोरोना काल में शिक्षक सम्मेलनों पर शिक्षा विभाग ने फूंक दिए 25.50 लाख रुपये

गोंडा। कोरोना काल में जब लोग जीवन बचाने से संघर्ष कर रहे थे, तब बेसिक शिक्षा विभाग में शिक्षक सम्मेलनों का दौर चल रहा था। शिक्षकों की छोटी छोटी बैठक बुलाकर अफसरों ने इसके आयोजन के नाम पर 25.50 लाख खर्च कर डाले।

अब खर्च धनराशि का हिसाब किताब देने से जिम्मेदार कन्नी काट रहे हैं। कोरोना काल में आवंटित बजट खपाने के लिए शिक्षकों से पूरे समय बैठक की फोटो मांगी जा रही है।

बेसिक शिक्षा में बजट खपाने का यह एक अकेला खेल नहीं है। इससे पहले कस्तूरबा स्कूलों में अनियमित तरीके से 96 लाख से अधिक बजट निकालने का मामला सामने आ चुका है।
जिले की 167 न्याय पंचायतों में 837 संकुलों का गठन करके शिक्षकों की बैठक बुलाकर सम्मेलन के नाम पर लाखों का बजट खर्च दिखा दिया गया। नवंबर 2020 में संकुल सम्मेलनों के लिए 25.50 लाख का बजट जारी हुआ था। बजट खर्च दिखाने को कोरोना काल में आनलाइन बैठक की जगह संकुल बैठक स्कूलों में कराया जाता दिखाया गया।


बिना बच्चों के स्कूल खुले और संकुल बैठकों से ब्लाक व जिले को प्रेरक बनाने की कागजी कवायद में अफसर जुटे रहे। अब उसके खुलने के बाद फिर से बंदरबांट के लिए नयी बजट राशि को स्वीकृत कराने की जोड़तोड़ शुरू हो गयी है।

सहायक वित्त एवं लेखाधिकारी कृष्णानंद चौहान का भी कहना है कि शिक्षक संकुल के मद में जारी बजट का हिसाब अभी नही मिला है। कब और कितना खर्च हुआ है, इसकी रिपोर्ट बीईओ को उपलब्ध करानी है।
हर विभाग तीसरी लहर में बच्चों के जीवन को सुरक्षित बनाने की कवायद में जुटा है। इसके तहत ही बच्चों को स्कूल बुलाने पर रोक लगी है। इसके बाद भी ब्लाक में तैनात एआरपी अपना नंबर बढ़ाने के लिए मोहल्ला क्लास के लिए शिक्षकों पर दबाव बना रहे हैं।

मोहल्ला क्लास के लिए कोई अधिकारिक आदेश नहीं है और शिक्षकों की स्वेच्छा पर निर्भर है। इसके बाद भी कई एआरपी शिक्षकों को परेशान करने के लिए अपने स्तर से ही मोहल्ला क्लास की रोजाना रिपोर्ट मांग रहे हैं और दबाव बनाए हैं। शिक्षकों को डर सता रहा है कि मोहल्ला क्लास में बच्चे एकत्र होते हैं और कोई बात हो गई तो इसका जिम्मेदार कौन होगा।

स्कूल स्तर पर शिक्षकों से प्रेरणा साथी बनवाए गए हैं लेकिन उन्हें प्रोत्साहित करने की कोई योजना विभाग ने तैयार नही की है। जिले भर में 10 हजार के करीब प्रेरणा साथी बनाए जाने का दावा विभाग कर रहा है। अनावश्यक मदों पर लाखों खर्च करने वाले विभाग ने प्रेरणा साथियों को एक प्रमाण पत्र देने तक की रणनीति तैयार नहीं की है। इससे शिक्षकों को काम लेने में भी कठिनाई आ रही है।