योगी सरकार का अनुपूरक बजट: आसान भाषा में समझें क्या होता है अनुपूरक बजट? जानिए इसके पहलु को

लखनऊ: उत्तर प्रदेश सरकार (Uttar pradesh Government) बुधवार 18 अगस्त को प्रदेश सरकार वित्तीय वर्ष 2021-22 का पहला अनुपूरक बजट सदन में पेश कर दिया है. प्रदेश की योगी सरकार आज अपने कार्यकाल का आखिरी और 2021-22 का पहला अनुपूरक बजट (supplementary budget) सदन में पेश किया. यूपी के वित्त मंत्री सुरेश खन्ना ने बुधवार को अनुपूरक बजट पेश किया. योगी सरकार ने सदन में 7 हजार 301 करोड़ से ज्यादा का अनुपूरक बजट पेश किया.


विधानसभा चुनाव 2022 की तैयारियों के बीच आ रहे इस अनुपूरक बजट में सरकार की प्रतिबद्धताएं और प्राथमिकताओं को पूरा करने का प्रबंध नजर आएगा. आखिर किन परिस्थितियों में सप्लीमेंट्री बजट लाने की जरूरत होती है. अनुपूरक बजट क्या होता है, इस रिपोर्ट के जरिए कुछ समझने की कोशिश करते हैं.

राज्य सरकारें सदन में पेश करती हैं आय-व्यय का ब्यौरा

राज्य सरकारें, हर साल आगामी वित्तीय वर्ष शुरू होने से पहले ही आय-व्यय का ब्यौरा सदन में पेश करती हैं. यह वो बजट होता है जिसके अनुसार आगामी वित्तीय वर्ष में किन विभागों को कितना बजट दिया जाएगा और राज्य सरकार किन-किन स्रोतों से कितना राजस्व इकट्ठा करेगी, इस बजट में इसका पूरा लेखा-जोखा होता है.

जानें क्या होता है अनुपूरक बजट?

मुख्य रूप से supplementary budget राज्य सरकार विपरीत परिस्थितियों में ही पेश करती है. यानी जब किसी विभाग को बजट सत्र में आवंटित की गई धनराशि कम पड़ जाती है तो ऐसे में राज्य सरकारें वित्तीय वर्ष खत्म होने से पहले ही अनुपूरक बजट ले आती हैं. सामान्य या वार्षिक बजट पूरे वित्त वर्ष के लिए होता है लेकिन साल के बीच में इस प्रकार के अनुपूरक बजट संवैधानिक परिपाटी है.

जानकारों की मानें तो सरकारें, चुनाव से पहले इस तरह का अनुपूरक बजट पेश करती हैं जिस खर्च का पहले से पूर्वानुमान नहीं होता या इमरजेंसी खर्च या फिर परिस्थिति के हिसाब से खर्च आ जाते हैं. उदाहरण के लिए कोरोना काल में मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे खर्चों के लिए विभागों से मांग पत्र लिया जाता है. जब ये अनुपूरक बजट लाया जाता है तो उस दौरान इन बातों को भी रखा जाता है कि जितना अनुपूरक बजट लाया गया है उतनी धनराशि, किन स्रोतों से राजस्व के रूप में राज्य सरकार को मिलेगी.

अनुपूरक बजट पेश करने के होते हैं दो पहलू

वित्तीय वर्ष खत्म होने से पहले जब राज्य सरकारों को ये लगता है कि जो बजट, सदन से पारित कराया गया उसका तमाम विभागीय योजनाओं में बजट की कमी हो रही है. तब ऐसे में राज्य सरकार सप्लीमेंट्री बजट लेकर आती हैं. उसे सदन से पास करा लेती हैं. साथ ही कहा कि सप्लीमेंट्री बजट पेश करने को दो रूप से देखा जा सकता है.

पहला सप्लीमेंट्री बजट अगर राज्य कार्य पेश करती हैं तो इसका मतलब मुख्य बजट पेश करने के दौरान होमवर्क में कमी रह गई, जिसकी वजह से दोबारा बजट का प्रोविजन कराना पड़ रहा. इसके साथ ही इसका दूसरा पहलू है कि वित्तीय वर्ष के दौरान राज्य सरकार ने पूरी गंभीरता से काम किया, जिसके चलते बजट की कमी हो गई और फिर राज्य सरकार ने सप्लीमेंट्री बजट पेश कर बजट का प्रोविजन किया

आखिरी बजट और अनुपूरक बजट को लाकर बढ़ा दिया खर्चा

चुनावी साल में राजनीतिक बजट चक्र के चलते खर्च का दबाव ज्यादा होता है. चुनाव के बाद जो नई सरकार आती हैं वह अपने पहले बजट में ज्यादा खर्च करती है, लेकिन अगले तीन बजट में खर्च कम कर दिया जाता है. इसके बाद आखिरी बजट और अनुपूरक बजट को लाकर खर्चा बढ़ा दिया जाता है. जब पैसा ज्यादा होगा, तो खर्च भी ज्यादा होगा तो विकास भी होगा और इससे सरकार को फायदा भी होगा.

योगी सरकार के इस सप्लीमेंट्री बजट के बारें मे कहा जा रहा है कि सरकार इस बजट के जरिए अपने चुनावी एजेंडों को पूरा करना चाहती है. विधानसभा चुनाव के मद्देनजर योगी सरकार अनुपूरक बजट के जरिये मुख्यमंत्री की घोषणाओं और अगले छह महीने में पूरी की जा सकने वाली परियोजनाओं को अमली जामा पहनाने की कोशिश करेगी.