शौचालय के अभाव में 52 परिषदीय स्कूलों के बच्चों को खुले में शौच जाना पड़ रहा, जिसमे ढाई हजार बेटियां

ज्ञानपुर:- केंद्र सरकार की स्वच्छता मिशन मुहिम जिले के सरकारी स्कूलों में आधे मुंह गिर गई है। शौचालय के अभाव में 52 परिषदीय स्कूलों के बच्चों को खुले में शौच जाना पड़ रहा है। इसमें दो से ढाई हजार बेटियां प्रभावित है। करीब 80 स्कूलों में शौचालय तो बने हैं, लेकिन पानी की समुचित व्यवस्था नहीं होने ये शोपीस बन चुके हैं।


स्वच्छ भारत मिशन के तहत प्रत्येक परिवार को शौचालयों से आच्छादित किया जा रहा है दो लाख 35 हजार एकल शौचालय संग 500 से अधिक गांव में सामुदायिक शौचालय भी बन गए हैं। प्राथमिक एवं पूर्व माध्यमिक विद्यालय में बच्चों को खुले में शौच करने न जाना पड़े इसलिए कंपोजिट ग्रांट, राज्य, चौदहवें वित्त के पैसे से बालक-बालिकाओं के लिए अलग-अलग शौचालय बनाया जा रहा है। 892 प्राथमिक, पूर्व माध्यमिक और कंपोजिट विद्यालयों में आपरेशन कायाकल्प के तहत 150 से अधिक स्कूलों की स्थिति सुधर चुकी है जबकि 250 पर काम चल रहा है। करीब छह साल बाद भी 52 ऐसे प्राथमिक एवं पूर्व माध्यमिक विद्यालय हैं जहां शौचालय ही नहीं बने है। जिससे वहां पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं को खुले में शौच के लिए जाना पड़ता है। ज्ञानपुर ब्लॉक के पूर्व माध्यमिक विद्यालय बयांव, बारी, साऊपुर, बहुता खुर्द में जहां शौचालय टूट गए हैं वहीं अभोली के प्राथमिक विद्यालय सागरपुर संग कई स्कूलों में शौचालय तो बने हैं, लेकिन पानी न होने से वह उपयोग लायक नहीं है। ऐसे में जिन बच्चों को स्वच्छता का पाठ पढ़ाया जाता है वे ही खुले में शौच जाने को विवश हैं। जिला समन्वयक निर्माण शिवम सिंह ने कहा कि अधिकतर स्कूलों में दो-दो शौचालय बन चुके हैं। 52 स्कूलों में पुराने शौचालय खराब हो गए हैं उनका निर्माण होना है। उन्होंने अनुमान जताया कि 52 स्कूलों में शौचालय न होने से करीब चार हजार बेटियों को शौच आदि के लिए खुले में जाना पड़ता है।

सभी स्कूलों में शौचालय बन गए हैं। कुछ विद्यालयों में काम चल रहा है। महोने के अंत तक वह भी पूर्ण हो जाएंगे भूपेंद्र नारायण सिंह, जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी

892 स्कूलों में 1.80 लाख बच्चों का प्रवेश

ज्ञानपुर कोरोना संक्रमण काल के कारण पहली बार प्राथमिक, पूर्व माध्यमिक और कंपोजिट स्कूलों में रिकार्ड बच्चों का प्रवेश हुआ है। अब तक एक लाख 80 हजार छात्र छात्राओं ने प्रवेश लिया है माह के अंत तक यह संख्या अधिक हो सकती है। ऐसे में जरूरी सुविधाएं मुहैया न होने से छात्र-छात्राओं को परेशानी हो सकती है।