बढ़ा हुए डीए से भी कर्मचारियों को नहीं मिला राहत, इस महंगाई मे कम पड़ रहा है ये डीए

महंगाई ने आम लोगों का जीवन कठिन कर दिया है। केंद्रीय और राज्य कर्मचारियों के लिए महंगाई भत्ता की घोषणा तो की गई है लेकिन बढ़ती कीमत के आगे यह नाकाफी है। स्थिति यह है कि पिछले डेढ़ वर्ष में महंगाई भत्ता में 11 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इसके विपरीत घरेलू खर्च डेढग़ुना तक बढ़ गया है। इसकी वजह से सामान्य परिवार में भी घर का बजट आवश्यक वस्तुओं तक सिमटकर रह गया है। अतिरिक्त खरीदारी तो सोच से भी बाहर हो गई है।

कोरोना काल में सरकार ने जनवरी 2020 से डीए फ्रीज कर दिया था। यह पाबंदी जनवरी 2021 तक लागू रही। जबकि, पेट्रोल-डीजल के दाम में बढ़ोतरी समेत अनेक वजहों से महंगाई लगातार बढ़ती गई। खाद्य तेल, दाल की कीमत में तो इस दौरान 50 से 100 प्रतिशत तक बढ़ोतरी हो गई। रसोई गैस पर खर्च भी 26 प्रतिशत बढ़ गया है। ऐसे में महंगाई भत्ता में 11 प्रतिशत बढ़ोतरी को कर्मचारी नाकाफी मान रहे हैं।

उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी महासंघ के मंडल अध्यक्ष अश्वनी कुमार श्रीवास्तव का कहना है कि महंगाई चरम पर है। ऐसे में डीए में 11 प्रतिशत बढ़ोतरी कर्मचारियों के साथ बेमानी है। कम से कम 25 प्रतिशत की बढ़ोतरी होनी चाहिए थी। उत्तर प्रदेश संयुक्त कर्मचारी परिषद के राजेंद्र त्रिपाठी का कहना है कि  महंगाई भत्ता निर्धारण का फार्मूला ही गलत है। इसमें थोक मूल्य सूचकांक को शामिल किया जाता है। जबकि, फूटकर में महंगाई ज्यादा बढ़ी है। कर्मचारियों की मांग है कि फूटकर मूल्य के आधार पर डीए का निर्धारण किया जाए।

महंगाई बढने के छह महीने बाद मिलता है भत्ता का लाभ

डीए का निर्धारण वर्ष में दो बार जनवरी तथा जुलाई में होता है। इस तरह पिछले छह महीने में महंगाई में हुई बढ़ोतरी के आधार पर डीए का निर्धारण होता है। यानि, जनवरी से जून के बीच बढ़ी महंगाई के आधार पर डीए में हुई बढ़ोतरी का लाभ जुलाई के वेतन से मिलेगा। 

डीए निर्धारण में कम हुई खाद्य वस्तुओं की भूमिका 

वेतन और पेंशन निर्धारण के जानकार एजी ऑफिस से रिटायर हरिशंकर तिवारी के अनुसार  उपभोक्ता मूल्य सूचकांक का निर्धारण 38 जिलों के 88 बाजारों के आधार पर होता है। इसमें पूरे देश के जिले और बाजार शामिल हैं। इसके अलावा ऊर्जा, खाद्य वस्तुएं, सेवा समेत अन्य क्षेत्रों के मूल्य में बढ़ोतरी का औसत लिया जाता है। इस लिहाज से 1960 में मूल्य सूचकांक निर्धारण में खाद्य वस्तुओं की हिस्सेदारी 60 फीसदी हुआ करती थी लेकिन सेवा शुल्क, ऊर्जा आदि क्षेत्रों में विस्तार हुआ है। इससे खाद्य वस्तुओं का प्रतिशत अब सिर्फ 58 प्रतिशत रह गया है उनका कहना है कि सेवा क्षेत्र में ही मोबाइल टैरिफ में बढ़ोतरी नहीं हुई है। ऊर्जा सेक्टर में बिजली समेत कई अन्य मद में खर्च कई वर्षों तक स्थिर रहता है 

लेकिन मूल्य सूचकांक का निर्धारण सभी के औसत पर तय होता है। इसलिए खाद्य वस्तुओं, पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस की कीमत में अधिक बढ़ोतरी के बावजूद डीए में अपेक्षित बढ़ोतरी नहीं हो पाती। इसके अलावा डीए का लाभ भी महंगाई बढने के छह महीने बाद मिलता है। वहीं एलआईसी के कर्मचारी अविनाश मिश्रा का कहना है कि मूल्य सूचकांक निर्धारण के लिए जिलों का चयन भी गलत तरीके से हुआ है। आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा को हटाकर कम महंगाई वाले जिले को शामिल कर लिया गया है। इससे भी मूल्य सूचकांक का वास्तविक निर्धारण नहीं हो पाता।

डीए बढ़ा 2000 रुपये, घरेलू खर्च में  3000 से अधिक की बढ़ोतरी

डेढ़ वर्ष बाद डीए में 11 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। इस लिहाज से मासिक वेतन में न्यूनतम 1980 से 27500 रुपये की बढ़ोतरी हुई है। हालांकि, 10 हजार रुपये से अधिक की बढ़ोतरी क्लास वन अफसरों के वेतन में ही हुई है। तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के ज्यादातर कर्मचारियों के वेतन में दो हजार से सात हजार रुपये की ही बढ़ोतरी हुईं है। इसके विपरीत घर का खर्चू ही तीन से छह हजार रुपये तक बढ़ गया है। यह बढ़ोतरी सिर्फ खाने पर हुई है। मकान का किराया, चिकित्सा, परिवहन आदि खर्च इसमें शामिल नहीं हैं।

‘महंगाई काफी बढ़ गई है। इससे बहुत कुछ बदला है। हमारा पांच लोगों का परिवार है। पहले सब्जी, राशन आदि पर आठ से 10 हजार खर्च होते थे लेकिन अब 15 हजार से 16 हजार खर्च होते हैं। पेट्रोल, गैस सबकुछ के दाम बढ़ गए हैं। पहले ई-रिक्शा वाले थोड़ी दूर का 10 रुपये लेते थे लेकिन अब 20 रुपये से कम नहीं लेते। महंगाई की वजह से कई मद में कटौती करनी पड़ी है।’ -