मामले के तथ्यों के अनुसार याची का चयन 16 जुलाई 2015 को ओबीसी में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कोटा के तहत हुआ था। 18 मई 2016 को उसे नियुक्ति मिली और दो वर्ष की प्रोबेशन अवधि पूरी करने पर उसे बतौर कांस्टेबल कन्फ़र्म कर दिया गया। वरिष्ठ अधिवक्ता गौतम का तर्क था कि एक कन्फ़र्म हो चुके कांस्टेबल की सेवा विभागीय प्रक्रिया पूरी किए बगैर समाप्त नहीं की जा सकती है।
चार वर्ष बीत जाने के बाद उसके स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आश्रित के प्रमाण पत्र पर संदेह नहीं किया जा सकता। उन्होंने अपनी बहस में कहा कि यूपी पुलिस आफिसर्स ऑफ सबार्डिनेट रैंक (पनिशमेंट एंड अपील) रूल्स 1991 के नियम 14 का पालन किए बिना कन्फ़र्म हो चुके सिपाही की सेवा समाप्त करना गलत है। कोर्ट ने सरकार से इस मामले में जवाब मांगते हुए इस याचिका की सुनवाई नौ सप्ताह बाद करने का निर्देश दिया है।