केंद्र ने यह कदम सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के बाद उठाया है, जिसमें ओबीसी की पहचान करने और सूची बनाने के राज्यों के अधिकार को अवैध बताया था। कोर्ट का कहना था कि 102वें संविधान संशोधन के बाद राज्यों को सामाजिक व आर्थिक आधार पर पिछड़ों की पहचान करने और अलग से सूची बनाने का कोई अधिकार नहीं है। सिर्फ केंद्र ही ऐसी सूची बना सकता है। वही सूची मान्य होगी। कोर्ट के फैसले के बाद विवाद खड़ा हो गया था, क्योंकि ओबीसी की केंद्र और राज्यों की सूची अलग-अलग है।
राज्यों की सूची में कई ऐसी जातियों को रखा गया है, जो केंद्रीय सूची में नहीं है। केंद्र इस मामले को लेकर इसलिए भी सतर्क है, क्योंकि राज्य की सूची के आधार पर ही कई ऐसी पिछड़ी जातियां हैं, जो राज्य की नौकरियों और शिक्षण संस्थानों के दाखिले में आरक्षण का लाभ पा रही हैं। कोर्ट का फैसला लागू होने से इन जातियों को नुकसान हो जाएगा।
केंद्र सरकार किसी तरह का कोई जोखिम नहीं लेना चाहती है। यही वजह है कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद ही साफ कर दिया था कि वह इससे सहमत नहीं है। केंद्र सरकार ने मराठा आरक्षण पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिए गए फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका भी दाखिल की थी। इसे कोर्ट ने खारिज कर दिया था। इसके बाद सरकार ने यह कदम उठाया है।
’>>केंद्र सरकार मानसून सत्र में ही लाएगी विधेयक, कैबिनेट से आज इसे मिल सकती है मंजूरी
’>>सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों की ओर से ओबीसी की पहचान करने को बताया था गलत